Thursday, April 30, 2015
Sunday, March 22, 2015
पेशावर कि घटनापार आधारित प्रतीश कि एक रचना
काश माँ मैं थोड़ी देर और सो लेता
काश आशिया मैम से और इक सवाल पूछता
गणित-विज्ञान में थोडा ध्यान देता
काश नइ बोटल से और पानी पीता
ब्रेक से पहले हरा-भरा कबाब खा लेता
काश मेरी मेज-कुर्सी पर अपना नाम लिख लेता
फटी हुई पैंट को राजु से सिलवा लेता
काश माँ मैं थोड़ी देर और सो लेता
गणित-विज्ञान में थोडा ध्यान देता
काश नइ बोटल से और पानी पीता
ब्रेक से पहले हरा-भरा कबाब खा लेता
काश मेरी मेज-कुर्सी पर अपना नाम लिख लेता
फटी हुई पैंट को राजु से सिलवा लेता
काश माँ मैं थोड़ी देर और सो लेता
काश उस टेबल के नीचे सिर छिपा लेता
मौत चखने क्लास के बाहर न निकलता
काश रोजी मैडम का कहा मान लेता
तो आज दादी संग मेरा कंबल बूनता
काश उन राक्षसों से झूट बोलता
“पिताजी मास्टर है” कहकर बच जाता
काश माँ मैं थोड़ी देर और सो लेता
मौत चखने क्लास के बाहर न निकलता
काश रोजी मैडम का कहा मान लेता
तो आज दादी संग मेरा कंबल बूनता
काश उन राक्षसों से झूट बोलता
“पिताजी मास्टर है” कहकर बच जाता
काश माँ मैं थोड़ी देर और सो लेता
काश-काश करके अब थक चूका हूँ मां
एक बार फिर तुझसे मिलना चाहता हूँ मां
धर्म मज़हब मैं क्या जानु
तुझे ही पूरी ज़िंदगी मैं मानु
बस चार पुस्तक का बस्ता मेरा
पच्चीस का मिक्की-माउस पाउच मेरा
फिर भी मैं यही हूँ सोचता
काश माँ मैं थोड़ी देर और सो लेता...
- प्रतीश मशानकर
एक बार फिर तुझसे मिलना चाहता हूँ मां
धर्म मज़हब मैं क्या जानु
तुझे ही पूरी ज़िंदगी मैं मानु
बस चार पुस्तक का बस्ता मेरा
पच्चीस का मिक्की-माउस पाउच मेरा
फिर भी मैं यही हूँ सोचता
काश माँ मैं थोड़ी देर और सो लेता...
- प्रतीश मशानकर
Thursday, March 19, 2015
Thursday, February 5, 2015
Saturday, January 10, 2015
Thursday, December 11, 2014
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